साँझ ढल गयी 


साँझ ढल गयी हे ! प्रियतम , अब 
धुंध गगन पर छाने लगा 
विमल इंदु निज शीट किरण से 
पवन वसुधा चमकाने लगा ।1।

प्रातः निकला नभ को विहगा 
विहगी संग नीड़ सजाने लगा 
किस और हो भटके ये दो बता 
चित्त जोर अति अकुलाने लगा ।2।

नहीं सह पाउँगा मैं प्रेयषि 
चकवा चकवी सम विरह व्यथा
 साँझ ढल गयी है प्रियतम 
अब जल्दी घर वापस आ जा ।3।


-0_0- हिमांशु राय 'स्वव्यस्त' -0_0-

Comments