बैरी हवा


बैरी हवा जब छू के जाती

जख्म जो तूने लगाये

तुझसे मिलने को पवन-मन 

आज भी ये चहचाहये ।1।

जब भी दिल को, याद तेरी

फूल सी, सूरत वो आती

चुभते हैं, काँटे चमन के

हर कलि भी, खिलखिलाती

बदलों में, घिर के 

सावन, छनछना कर, बरस जाये

आज भी तुझे देखने को

जाने क्यूँ मन तरस जाये ।2 ।

तुझसे मिलने को पवन-मन 

आज भी ये चहचाहये 

-0_0- हिमांशु राय 'स्वव्यस्त' -0_0-

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