अविस्वास
चमकती चाँदनी बिखरी
सवेरा हर पहर फैला
अँधेरी हैं तो बस गलियाँ
जमाने के दिलों लाला ।1।
वो जिन हाथों में सौंपी थी
अमुल जीवन-कुसुम कलियां
दगेबाजी के डर शायद
उन्होंने भूल कर डाला ।2।
जो हमको जान से प्यारा
उन्हीं नज़रों में हम काले
जो ये सोचा भभक बैठी
न मिटती आग ना ज्वाला ।3।
भयानक स्वप्न घर करते
चढ़ा निज विम्ब पर माला
हमीं ने गम के मारे खुद
हमीं का कत्ल कर डाला ।4।
समझ में बात आयी अब
जो ख्वाब-ए-कत्ल कर डाला
न मेहँदी रंग लाती है
न ऑंखें सुरमे से काला ।5।
यहाँ सब खेल उल्टा है
बुना मकड़ी का घन-जाला
वो हाँथो का करिश्मा था
कहीं आँखों ने कर डाला ।6।
भयानक स्वप्न घर करते
ReplyDeleteचढ़ा निज विम्ब पर माला
हमीं ने गम के मारे खुद
हमीं का कत्ल कर डाला ।4।
- वाह! क्या खूब लिखा है...