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भूलो तो कुछ भी याद नहीं

मन की नादानी मन में है  नैनों की कहानी  नज़रों में  भूलो तो कुछ भी याद नहीं  करो याद तो बाहें,  बाहों में  अठखेलि वही नैनों की पुरानी  खेल नज़रिये का अपना  नैनों को भाये  मन में बसे  दिल को भाये  दरगाहों में  दिल का मिलना  रोना, खोना  है दीवानापन, साँसों में  अपनों को गैर किये  चाहत में  लुट गए भरी बज़ारों में  चाहत ना थी  कोई प्यार करे  बस प्यार हमारा अपना ले  पर  चाहो गर  सब कुछ मिल जाए  फिर बात ही क्या  अभिशापों में   -0_0-  हिमांशु राय ' स्वव्यस्त' -0_0-