आज़ के अखबारों में बड़े-बड़े शहरों में ग़ालिब अखबारों में क्या छपता ! देश का बनिया लूट चवन्नी परदेशों में जा छिपता [१ ] सरकारें अफ़रा-तफ़री में बैंक बड़े बेहाल पड़े देश-देशान्तर तू-तू मैं-मैं जनता ले अख़बार पढ़े [२ ] डुब गई लुटिया, वातिल-गमन की नेता जी के क्या छटका? मरती तो बदहाल किसानी भारत का सोना मरता [३] आज़ के अख़बारों में ग़ालिब न्याय छोड़ सब कुछ छपता [४] 'स्वव्यस्त'
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थका सी जातीं ये यादें हमें बुलाते, हम आ जाते यादों में क्यों, क्या जीना ? थका सी जातीं, ये यादें घुट-घुट आंसू, ये पीना ।1। रहना था जब, दिल के पास ही दूर निकल गए, जाने कहाँ क्यों दिल में जगह, दी थी रह जाते मुश्किल ना, होता जीना थका सी जातीं, ये यादें घुट-घुट आंसू, ये पीना ।2। ख़ता हुयी, जो भी मुझसे एक बार को तो, कह सकते थे? नाचीज़ के तो, सब कुछ तुम ही थे तन, जीवन, मरना-जीना ।3। बस लौट अभी, आ जाओ अब, मुश्किल लगता तुम बिन जीना थका सी जातीं, ये यादें और घुट-घुट आंसू, ये पीना ।4। -0_0- हिमांशु राय ' स्वव्यस्त' -0_0-
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