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Showing posts from June, 2016
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शहर में कर्फ़्यू  अपनी कुछ नयी पुरानी स्मृतियों से मेरे मस्तिष्क में उठने वाले, दंगों के उन भयानक दृश्यों को शब्दों में पिरोने की कोशिश की है, जिनकी कल्पना मात्र से ही ऑंखें नम और रोएँ भरभरा जाते हैं और साथ ही एक छोटी सी आशा भी की है, एक ऐसे दिन की           ज़ब धर्मध्वजी का ये खेल समाप्त कर अमन के साथ मानवता की सुरभित कलियाँ दशों दिशाओं को सुगन्धित करेंगी  मची शहर के, गलियारों में  आनन -फानन अति भारी  बार एक फिर, धर्मध्वजी में  गई जगत की मति मारी ।१।   पुलिस के जत्थे, चौक पे चौकस  दहशतगर्दी गलियों में  खून की धारें, फूटीं पग-पग  लाश की जमघट नदियों में |२।    हैवान की नंगी, सूरत नचती  नेपथ्य, कहीं चौबारों में  अस्मत  लुटती थी  चीख़ दब गयी  बाग-बाग दीवारों में ।३। सन्नाटा, झन्नाहट पग-पग  जहाँ थे कल तक, ठेले-मेले  खून के थक्के, जमे जहाँ-तँह कल को बिकते, थे केले ।४। शहर समूचा, साँप सूँघ गये  श्मशान, लगती दुनिया  तलवारें नंगी लहरायीं  गूँज रहीं, गोली गलियाँ ।५। बाजारों में, आगजनी 
याद में तिल-तिल तड़पना   याद में तिल-तिल तड़पना रात का जगना झलक भर को एक-बस वीरान में नज़रें भटकना जाने क्या दीवानगी है अजब दिल का टूट, हँसना याद में तिल-तिल तड़पना अश्क पलकों से फिसलना मुस्कुराकर बात करना सुन सके न कोई, उस आवाज़ से पल-पल बिलखना याद में तिल-तिल तड़पना बेरुखी अंदाज़ में कुछ बेसुधी सी होश में वो, महफ़िलों में, तेरी गोरी बाहों का न होना खलना याद में तिल-तिल तड़पना नींद में भी, होश में भी रात आते स्वप्न में भी स्मरण करना तुम्हारी तुमसे सब बेबाक कहना चाहतों की बातें करना स्वप्नों का सजना, विखरना मंज़िलें जिनके लिए सब राज सब संसार तजना अब हैं लगतीं बेवजह ये बेतुका मन का बहकना याद में तिल-तिल तड़पना   'स्वव्यस्त'