Posts

Showing posts from May, 2016
बादल यादें भर-भर लाया बादल यादें भर-भर लाया  तन्हाई का मौसम छाया  छम-छम करता कहर बरसता दिल की आह! से मन भर आया  बादल यादें भर-भर लाया नींद रात की उड़-उड़ जाती  अश्क़ों ने लब-पलक भिंगाया  चैन दिवस भर नहीं एक पल  आशाओं से मन अकुलाया  बादल यादें भर-भर लाया तम के तीन प्रहर जा निकले स्वप्न में शोक ने विघ्न लगाया  जोर-जोर अति     सिसक रहा कोई  कहता प्यार किया क्या पाया ? बादल यादें भर-भर लाया   | |    -0_0-  हिमांशु राय ' स्वव्यस्त' -0_0-  
फिर एक पेड़ को कटते देखा   फिर एक पेड़ को कटते देखा  लौह खम्भ को गड़ते देखा  नूतनता से चिर के पञ्जर  लड़ते-लड़ते गिरते देखा  फिर एक पेड़ को कटते देखा बचपन जिनकी ऊँगली पकडे  गिरते-गिरते चलना सीखा  सनम-कमाई के फेरों में  बाप-पूत में बँटते देखा  फिर एक पेड़ को कटते देखा   रेल के ऊपर से बस दौड़ी  पुल के नीचे छुक-छुक रेल  घोड़े-टट्टु गए तबेले  मोटर ऊँट को चढ़ते देखा  फिर एक पेड़ को कटते देखा   -0_0-  हिमांशु राय ' स्वव्यस्त' -0_0-