फिर एक पेड़ को कटते देखा 

फिर एक पेड़ को कटते देखा 
लौह खम्भ को गड़ते देखा 
नूतनता से चिर के पञ्जर 
लड़ते-लड़ते गिरते देखा 

फिर एक पेड़ को कटते देखा

बचपन जिनकी ऊँगली पकडे 
गिरते-गिरते चलना सीखा 
सनम-कमाई के फेरों में 
बाप-पूत में बँटते देखा 

फिर एक पेड़ को कटते देखा 

रेल के ऊपर से बस दौड़ी 
पुल के नीचे छुक-छुक रेल 
घोड़े-टट्टु गए तबेले 
मोटर ऊँट को चढ़ते देखा 

फिर एक पेड़ को कटते देखा 

-0_0- हिमांशु राय 'स्वव्यस्त' -0_0-

 


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