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Showing posts from June, 2017
तुम जश्न मनाते जाते हो तुम जश्न मनाते गाते हो  जिस ख़ुशी पे तुम इतराते हो  तुम कहाँ सोच कब ये पाते  किसकी कुर्बानी खाते हो ।। कब किसके कुञ्ज उजड़ते हैं  जब हँसी तुम्हारी बेबस है  तुम कहाँ समझ भी ये पाते  किस पल-छिन क्या तुम खाते हो ।। तुम जश्न मनाते जाते हो ।। ' स्वव्यस्त '
दिल की आवारगी में, दिन का बंजारापन चाहत में डूबती कुछ, आँखों का बेचारापन दिल की आवारगी में, दिन का बंजारापन ।।   शहर एक नहीं, गाँव एक नहीं  मुझ राही को, ठाँव एक नहीं  चलता जाता, बढ़ता जाता  बाज़ारों में, भाव एक नहीं बदल गए सब, यार वो यारी  ख़्वाबों में अब, ख़्वाब एक नहीं     पूछ पड़ा मन...  बेचारी क्यूँ? ... कैसा ये मतवालापन ? दिल की आवारगी में, दिन का बंजारापन ।।   समझ-समझ कभी, थक सो जाता  कभी, रात भर नींद नहीं  नाव बहुत, इस जलडमरू, बस  नावों में, पतवार एक नहीं पीर उठी होठों की चिरकन, नियति करे दीवानापन दिल की आवारगी में, दिन का बंजारापन ।। ' स्वव्यस्त ' अच्छा लगे तो शेयर करना न भूलें ...  धन्यवाद !