तुम जश्न मनाते जाते हो


तुम जश्न मनाते गाते हो 

जिस ख़ुशी पे तुम इतराते हो 

तुम कहाँ सोच कब ये पाते 

किसकी कुर्बानी खाते हो ।।


कब किसके कुञ्ज उजड़ते हैं 

जब हँसी तुम्हारी बेबस है 

तुम कहाँ समझ भी ये पाते 

किस पल-छिन क्या तुम खाते हो ।।


तुम जश्न मनाते जाते हो ।।


'स्वव्यस्त'

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