दिल की आवारगी में, दिन का बंजारापन



चाहत में डूबती कुछ, आँखों का बेचारापन

दिल की आवारगी में, दिन का बंजारापन ।।

 

शहर एक नहीं, गाँव एक नहीं 

मुझ राही को, ठाँव एक नहीं 

चलता जाता, बढ़ता जाता 

बाज़ारों में, भाव एक नहीं

बदल गए सब, यार वो यारी 

ख़्वाबों में अब, ख़्वाब एक नहीं  

 

पूछ पड़ा मन...  बेचारी क्यूँ? ... कैसा ये मतवालापन ?

दिल की आवारगी में, दिन का बंजारापन ।।

 

समझ-समझ कभी, थक सो जाता 

कभी, रात भर नींद नहीं 

नाव बहुत, इस जलडमरू, बस 

नावों में, पतवार एक नहीं


पीर उठी होठों की चिरकन, नियति करे दीवानापन

दिल की आवारगी में, दिन का बंजारापन ।।


'स्वव्यस्त'



अच्छा लगे तो शेयर करना न भूलें ...  धन्यवाद !

Comments

Popular posts from this blog

परिवर्तन