कब वक़्त बदलेगा?


वो बहती हवा में

लुढ़कता ही जाता

भरे आँख रजनी

का अन्तकाल आता

यों, कुछ देर रजनी को

घर से हो जाती

तो अस्ताचल, सूरज

कभी पहले जाता

दिवाकर तिमिर से

न अब तक सका मिल

बस संध्या-मिलन भर से

मन को बहलाता ।1।

हा ! स्वांग कैसे निर्मम

रचे ये विधाता

के दुनिया की हस्ती

है जिन हाथों सौंपी

वही प्रेम-वंचित हो

फिरता विलाला  ।2।

कब वक़्त बदलेगा

करवट निराली वो?

कब रात प्रियतम

जगत्पत मिलेगा?

कब होगी फूलों की

वारिस गगन से?

न कब जाने , जोड़ा ये

संग-संग चलेगा। ।3।

-0_0- हिमांशु राय 'स्वव्यस्त' -0_0-

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