यादें
समझ न आता, आग में यादें
या यादों में, छिपी है आग।1।
जब-जब खिलती, कुसुम कलि
झुलसा जाती, ये बैरी बाग़
धुँवा भी इसका, निकल न पाता
घुटा जा रहा, मन का राग
समझ न आता, आग में यादें
या यादों में, छिपी है आग ।2।
दुःख देतीं, कभी सुख देतीं
कभी-कभी, करती आक्रान्त
मुख पे कभी, हँसी झलकातीं
कभी तनिक, कर जातीं उदास
समझ न आता, आग में यादें
या यादों में, छिपी है आग ।3।
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