ख़ुदपसन्दी


न कोई बात है अगर
तो हँस रहा हूँ क्यूँ मगर?
है तंग ही सही डहर
मचल रहा डगर-डगर
सुबह जो देर से जगा
तो हो चुकी है दोपहर
है तंग भींड से शहर
सभी की आँख जोहती
सुनहली, चाँदनी मुहर
मुझे, न कुछ भी चाहिए
आराम से मैं इस पहर ।1।


जगा जो देर से जरा
न इल्म है, न मन हरा
है जोश है, जुनून है
भविष्य मुठ्ठियों भरा
सँजो रहा विवेक से
है आत्ममान भी भरा
है आश एक छुपी हुयी
वो डर तो ज्यों डरा-मरा ।2।

-0_0- हिमांशु राय 'स्वव्यस्त' -0_0-

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