बना रहे तेरा यादमहल
ख्वाबों में भी
तू बिछड़ेगी
,
आहट भर से
घबरा अक्सर
इस सोच मे एक
पागल रातों को
जगा हुआ ही रह जाये
टूटे ना 'यादमहल' तेरा
यादों से दूर न तू जाये ।1।
जित जागता ये
तन रातों को
तित कल्प मन
में हो रहा प्रबल
पाखण्ड मूलतः
कभी प्रेम ये
कभी असह दुःख,
कभी हलाहल
" निगलते हैं जो,
यही सोच, मन
दूर न जाये यादों से वो
बना रहे, तेरा यादमहल" ।2।
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