दौलत 

दौलत के भरोसे ये दुनिया 
दौलत की मची मारा-मारी ।1।

कोई कमा रहा, कोई लूट रहा 
कोई छींट रहा, कोई बीन रहा 
कोई मांग रहा, कोई छीन रहा 
कोई बैठे-बैठे, गीन  रहा
रफ़्तार से, ये दुनिया चलती
दौलत के लिए, ये रफ़्तारी 

दौलत के भरोसे, ये दुनिया 
दौलत की मची. मारा-मारी ।2।

दौलत को बने कोई, व्यापारी 
दौलत ही को कोई, बना भिखारी 
दौलत जो हो, व्याहो बेटी
बिन व्याह रखो या, घर में कुँवारी  

दौलत के भरोसे, ये दुनिया 
दौलत की मची, मारा-मारी।3।

जेबें जो भरी हों, रेजकारी 
बहुतेरे बिकते, अधिकारी 
अरे ! मोल भाव भी, कर लेते 
ख़िदमत जो करे, दोस्ती-यारी 
दान-स्पर्धा में, पिछड़ गए 
बरती जाएगी, ईमानदारी 

दौलत के भरोसे, ये दुनिया 
दौलत की मची, मारा-मारी ।4।

दौलत जो उड़ाए, अधिकारी 
है हाँथ पसारे, खड़ा भिखारी 
जितनी दौलत, उतनी ताकत 
उतने ही करतब, जेबों में 
खाली जेबें, कठपुतली के 
है, भरे हुए वह, देख मदारी 

दौलत के भरोसे, ये दुनिया 
दौलत की मची, मारा-मारी ।5।

है व्यस्त हुवा, इतना जीवन 
अपनों से नाते, टूट गए 
कुछ से हमने, मुँह मोड़ लिया 
कुछ हमें अकेला, छोड़ गए 
कहिं विमुख हैं बच्चे, तात-मात  से 
भूल गयी, निज जिम्मेदारी 

दौलत के भरोसे, ये दुनिया 
दौलत की मची, मारा-मारी ।6।


-0_0- हिमांशु राय 'स्वव्यस्त' -0_0-


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