किस राग से, दिल रो रहा ? दुःख किसी का रो रहा कोई दर्द खुद को हो रहा किससे कहें ? कैसे कहें ? किस राग से, दिल, रो रहा ? कितने दीवाने, जागते सारा जहाँ, जब सो रहा है, क्या वजह इन आंसुओं की ? सब्र क्यों कोई, खो रहा ? ।1। किसकी आँखें, रो रहीं ? कब किसका, आंसू सूखता ? जागता, किसका खुदा ? भगवान किसका, सो रहा ? ।2। किससे कहें ? कैसे कहें ? किस राग से, दिल, रो रहा ? -0_0- हिमांशु राय ' स्वव्यस्त' -0_0-
Posts
Showing posts from February, 2016
- Get link
- X
- Other Apps
गम के सायों में प्यार की बारिस में, भींग लिए पल-भर अब आंसुओं से लतफत हो जाने का मन है यादों से भर आया दिल, आज इतना नैनों से नदियाँ बहाने का मन है ।1। जो, कह सका ना कभी हाल तुझसे मेरी चाहतों की बातें तेरे जुल्मों के किस्से मेरी यादों की बगिया वो बिखरे इरादे इक वादा मेरा वो बहाने तेरे ।2। सब रहेंगे सलामत लिखे कागजों में मेरी नादान बातें तेरे नख़रे बड़े ।3। प्यार तो तेरा मुझको न हासिल हुआ गम के सायों में घुप्प चीख जाने का मन है ।4। फिरआंसुओं से लतफत हो जाने का मन है -0_0- हिमांशु राय ' स्वव्यस्त' -0_0-
- Get link
- X
- Other Apps
दौलत दौलत के भरोसे ये दुनिया दौलत की मची मारा-मारी ।1। कोई कमा रहा, कोई लूट रहा कोई छींट रहा, कोई बीन रहा कोई मांग रहा, कोई छीन रहा कोई बैठे-बैठे, गीन रहा रफ़्तार से, ये दुनिया चलती दौलत के लिए, ये रफ़्तारी दौलत के भरोसे, ये दुनिया दौलत की मची. मारा-मारी ।2। दौलत को बने कोई, व्यापारी दौलत ही को कोई, बना भिखारी दौलत जो हो, व्याहो बेटी बिन व्याह रखो या, घर में कुँवारी दौलत के भरोसे, ये दुनिया दौलत की मची, मारा-मारी ।3। जेबें जो भरी हों, रेजकारी बहुतेरे बिकते, अधिकारी अरे ! मोल भाव भी, कर लेते ख़िदमत जो करे, दोस्ती-यारी दान-स्पर्धा में, पिछड़ गए बरती जाएगी, ईमानदारी दौलत के भरोसे, ये दुनिया दौलत की मची, मारा-मारी ।4। दौलत जो उड़ाए, अधिकारी है हाँथ पसारे, खड़ा भिखारी जितनी दौलत, उतनी ताकत उतने ही करतब, जेबों में खाली जेबें, कठपुतली क...
- Get link
- X
- Other Apps
यादें समझ न आता, आग में यादें या यादों में, छिपी है आग ।1। जब-जब खिलती, कुसुम कलि झुलसा जाती, ये बैरी बाग़ धुँवा भी इसका, निकल न पाता घुटा जा रहा, मन का राग समझ न आता, आग में यादें या यादों में, छिपी है आग ।2। दुःख देतीं, कभी सुख देतीं कभी-कभी, करती आक्रान्त मुख पे कभी, हँसी झलकातीं कभी तनिक, कर जातीं उदास समझ न आता, आग में यादें या यादों में, छिपी है आग ।3। -0_0- हिमांशु राय ' स्वव्यस्त' -0_0-
- Get link
- X
- Other Apps
समझ सका तो पार है लड़ेगा जो हर बात में विवाद नजर आएगा जिंदगी फंसाद में मुकाम गुजर जाएगा आन बान शान ये मकान भी लड़ायेगा वकील थानेदार वो दीवान भी लड़ायेगा बात से जुबान का ये घात भी लड़ायेगा जो बात धर्म की छिड़ी समाज बर्गलाएगा न माने गर तू बात खुद का बाप बड़बड़ायेगा या मान ली जो बात दर, वो भूत तेरे आएगा लड़ेगा जो हर बात में विवाद नज़र आएगा मानना तुझे सही गलत है क्या है बेफिजूल समझ सका तो पार है नहीं तो दुःख अपार है दीवार ये बाजार रोजगार भी लड़ायेगा लड़ेगा जो हर बात में विवाद नज़र आएगा -0_0- हिमांशु राय ' स्वव्यस्त' -0_0-
- Get link
- X
- Other Apps
थका सी जातीं ये यादें हमें बुलाते, हम आ जाते यादों में क्यों, क्या जीना ? थका सी जातीं, ये यादें घुट-घुट आंसू, ये पीना ।1। रहना था जब, दिल के पास ही दूर निकल गए, जाने कहाँ क्यों दिल में जगह, दी थी रह जाते मुश्किल ना, होता जीना थका सी जातीं, ये यादें घुट-घुट आंसू, ये पीना ।2। ख़ता हुयी, जो भी मुझसे एक बार को तो, कह सकते थे? नाचीज़ के तो, सब कुछ तुम ही थे तन, जीवन, मरना-जीना ।3। बस लौट अभी, आ जाओ अब, मुश्किल लगता तुम बिन जीना थका सी जातीं, ये यादें और घुट-घुट आंसू, ये पीना ।4। -0_0- हिमांशु राय ' स्वव्यस्त' -0_0-
- Get link
- X
- Other Apps
सोच मैं उनके सहारे जो किया, था वो गलत? या किया जिससे, गलत था? कर रहा, क्या वो सही है? या के सोचा ही गलत था? ।1। उलझ ऐसी, उधेड़बुन में लड़खड़ा, जाता कभी मैं गिर भी जाता, हूँ कभी फिर, सम्भल जाता आप से ।2। गिरते सम्भलते, लड़खड़ाते चल रहा हूँ, अनवरत न साथ कोई, है न मंजिल ना हि दिखते, अब किनारे ।3। मुड़ सकूँ, एक बार फिर से बदलने, खुद के सितारे छोड़ आया, जिनको पीछे सोच मैं उनके सहारे ।4। -0_0- हिमांशु राय ' स्वव्यस्त' -0_0-
- Get link
- X
- Other Apps
साँझ ढल गयी साँझ ढल गयी हे ! प्रियतम , अब धुंध गगन पर छाने लगा विमल इंदु निज शीट किरण से पवन वसुधा चमकाने लगा ।1। प्रातः निकला नभ को विहगा विहगी संग नीड़ सजाने लगा किस और हो भटके ये दो बता चित्त जोर अति अकुलाने लगा ।2। नहीं सह पाउँगा मैं प्रेयषि चकवा चकवी सम विरह व्यथा साँझ ढल गयी है प्रियतम अब जल्दी घर वापस आ जा ।3। -0_0- हिमांशु राय ' स्वव्यस्त' -0_0-
- Get link
- X
- Other Apps
ख़ुदपसन्दी न कोई बात है अगर तो हँस रहा हूँ क्यूँ मगर? है तंग ही सही डहर मचल रहा डगर-डगर सुबह जो देर से जगा तो हो चुकी है दोपहर है तंग भींड से शहर सभी की आँख जोहती सुनहली, चाँदनी मुहर मुझे, न कुछ भी चाहिए आराम से मैं इस पहर ।1। जगा जो देर से जरा न इल्म है, न मन हरा है जोश है, जुनून है भविष्य मुठ्ठियों भरा सँजो रहा विवेक से है आत्ममान भी भरा है आश एक छुपी हुयी वो डर तो ज्यों डरा-मरा ।2। -0_0- हिमांशु राय ' स्वव्यस्त' -0_0-
- Get link
- X
- Other Apps
अविस्वास चमकती चाँदनी बिखरी सवेरा हर पहर फैला अँधेरी हैं तो बस गलियाँ जमाने के दिलों लाला ।1। वो जिन हाथों में सौंपी थी अमुल जीवन-कुसुम कलियां दगेबाजी के डर शायद उन्होंने भूल कर डाला ।2। जो हमको जान से प्यारा उन्हीं नज़रों में हम काले जो ये सोचा भभक बैठी न मिटती आग ना ज्वाला ।3। भयानक स्वप्न घर करते चढ़ा निज विम्ब पर माला हमीं ने गम के मारे खुद हमीं का कत्ल कर डाला ।4। समझ में बात आयी अब जो ख्वाब-ए-कत्ल कर डाला न मेहँदी रंग लाती है न ऑंखें सुरमे से काला ।5। यहाँ सब खेल उल्टा है बुना मकड़ी का घन-जाला वो हाँथो का करिश्मा था कहीं आँखों ने कर डाला ।6। -0_0- हिमांशु राय ' स्वव्यस्त' -0_0-
- Get link
- X
- Other Apps
बैरी हवा बैरी हवा जब छू के जाती जख्म जो तूने लगाये तुझसे मिलने को पवन-मन आज भी ये चहचाहये ।1। जब भी दिल को, याद तेरी फूल सी, सूरत वो आती चुभते हैं, काँटे चमन के हर कलि भी, खिलखिलाती बदलों में, घिर के सावन, छनछना कर, बरस जाये आज भी तुझे देखने को जाने क्यूँ मन तरस जाये ।2 । तुझसे मिलने को पवन-मन आज भी ये चहचाहये -0_0- हिमांशु राय ' स्वव्यस्त' -0_0-
- Get link
- X
- Other Apps
कब वक़्त बदलेगा? वो बहती हवा में लुढ़कता ही जाता भरे आँख रजनी का अन्तकाल आता यों, कुछ देर रजनी को घर से हो जाती तो अस्ताचल, सूरज कभी पहले जाता दिवाकर तिमिर से न अब तक सका मिल बस संध्या-मिलन भर से मन को बहलाता ।1। हा ! स्वांग कैसे निर्मम रचे ये विधाता के दुनिया की हस्ती है जिन हाथों सौंपी वही प्रेम-वंचित हो फिरता विलाला ।2। कब वक़्त बदलेगा करवट निराली वो? कब रात प्रियतम जगत्पत मिलेगा? कब होगी फूलों की वारिस गगन से? न कब जाने , जोड़ा ये संग-संग चलेगा। ।3। -0_0- हिमांशु राय ' स्वव्यस्त' -0_0-
- Get link
- X
- Other Apps
बना रहे तेरा यादमहल ख्वाबों में भी तू बिछड़ेगी , आहट भर से घबरा अक्सर इस सोच मे एक पागल रातों को जगा हुआ ही रह जाये टूटे ना 'यादमहल' तेरा यादों से दूर न तू जाये ।1। जित जागता ये तन रातों को तित कल्प मन में हो रहा प्रबल पाखण्ड मूलतः कभी प्रेम ये कभी असह दुःख, कभी हलाहल " निगलते हैं जो, यही सोच, मन दूर न जाये यादों से वो बना रहे, तेरा यादमहल " ।2। -0_0- हिमांशु राय ' स्वव्यस्त' -0_0-
- Get link
- X
- Other Apps
ग़म का पिटारा किसी ने कहा " कुछ हार गयी तकदीर कुछ टूट गए सपने कुछ गैरों ने बर्बाद किया कुछ छोड़ गए अपने " मैंने कहा- " तेरे दर्द को जो नाप ले पैमाना कहाँ से लाऊँ खुशियों से भर दे तेरा बेदाग दामन ऐसा अनमोल, अनमिट नजराना, कहाँ से लाऊँ दर्द तो मेरा भी वही है मेरे अन्जान साथी हो तो दे दे दवा मुझको इक घूंट भर बस ये गम का पिटारा यहीं भूल जाऊँ " -0_0- हिमांशु राय ' स्वव्यस्त' -0_0-
- Get link
- X
- Other Apps
अलविदा कह जिन्दगी अलविदा कह, जिन्दगी बीती बिताई बातों को अब चैन से दो पल सुला तन्हा कटे ना रातों को ।1। अरे कौन दोषी, कौन अपने? समझे ना जज्बातों को जब आने थे, आए गये जो, होनहारी थी, हुयी क्या याद करना, आहें भरना? सुन सका ना, कोई जब ।2। अब जाग जा मन होश धर दोहरा ना पिछली मातों को दे अलविदा कह जिन्दगी मुस्कान भर, जज्बातों को ।3। -0_0- हिमांशु राय ' स्वव्यस्त' -0_0-