आ मानस तुझे एक, हक़ीकत सुनाऊँ

आ मानस तुझे एक, हक़ीकत सुनाऊँ 
अपने भय से जने, गरल के प्याले पिलाऊँ 

दिल के चाहने से मिलता, न चाह रोक पाता 
अपनी आदत से मज़बूर, पीर में मुस्काता
तेरा दर्द देख तुझको, सहारा दिखाऊँ
आ मानस तुझे एक, हक़ीकत सुनाऊँ

ख़ुदा से भी ज़्यादा, मैं ख़ुद से डरा हूँ
ये सच ये हक़ीकत है, घबरा रहा हूँ
क्योंकि ज़िंदगी कुटिल, जाने कब काट खाए
मैं ख़ुद को भूल जाऊँ, एक भूल बस हो जाए
न मुझमें बुराई, तनिक भी मग़र
जाने कब जाने कैसे, कोई नीचता दिखाऊँ 
 
आ मानस तुझे, ये हक़ीकत सुनाऊँ
  

-0_0- हिमांशु राय 'स्वव्यस्त' -0_0-

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