दीवानगी, रोती रही
चाह में उनके, किनारे
छोड़-कर सब, चल पड़े
सम्भले जब कदम, नयन
मुकाम देख, रो पड़े
ये बेवजह, किस चाह में
हम, खुद की साख
खो-खड़े?
रो-रो के अश्क , इश्क़ में
ये आंखें, सूजती रहीं
ख्वाब, लापता हुए
दीवानगी, रोती रही
दर्द की, कहानियाँ
बहुत सुनी थीं, प्यार में
थे न सच से, बेख़बर
अज्ञान बनकर, बढ़ गये
दुर्भाग्य था
गज़ल, मिली ना
हाँथ लग गयी, शायरी
चोट पर, मरहम लगाती
रो रही, कह बाँवरी
ये, चाह में किसके
किनारे, छोड़कर सब
चल दिए, तुम
आशिक़ी की बाढ़ में, क्यूँ
होश खोये, बह गये तुम?
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