यह ब्लॉग मुख्यतः कविताओं के निमित्त है, जिनकी रचना मैं अपनी ख़ुद की सोच से करता हूँ, अगर आपको पसन्द आयें तो कृपा कर इन्हें ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाने का कष्ट करें।
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मैं
छायादित अन्तस्तर मेरा
कारण ये नश्वर काया
जैसे, पूर्ण-प्रकाश-विमुख
दीपक
कारण सर्वस
निज
की काया
मैं तो स्वेत, प्रकाश मात्र बस
अँधियारा ये तन लाया
मैं सुत अजर-अमर, आजन्मा
नश्वर जीवन, छल,माया
-0_0- हिमांशु राय 'स्वव्यस्त' -0_0-
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आज़ के अखबारों में बड़े-बड़े शहरों में ग़ालिब अखबारों में क्या छपता ! देश का बनिया लूट चवन्नी परदेशों में जा छिपता [१ ] सरकारें अफ़रा-तफ़री में बैंक बड़े बेहाल पड़े देश-देशान्तर तू-तू मैं-मैं जनता ले अख़बार पढ़े [२ ] डुब गई लुटिया, वातिल-गमन की नेता जी के क्या छटका? मरती तो बदहाल किसानी भारत का सोना मरता [३] आज़ के अख़बारों में ग़ालिब न्याय छोड़ सब कुछ छपता [४] 'स्वव्यस्त'
याद में तिल-तिल तड़पना याद में तिल-तिल तड़पना रात का जगना झलक भर को एक-बस वीरान में नज़रें भटकना जाने क्या दीवानगी है अजब दिल का टूट, हँसना याद में तिल-तिल तड़पना अश्क पलकों से फिसलना मुस्कुराकर बात करना सुन सके न कोई, उस आवाज़ से पल-पल बिलखना याद में तिल-तिल तड़पना बेरुखी अंदाज़ में कुछ बेसुधी सी होश में वो, महफ़िलों में, तेरी गोरी बाहों का न होना खलना याद में तिल-तिल तड़पना नींद में भी, होश में भी रात आते स्वप्न में भी स्मरण करना तुम्हारी तुमसे सब बेबाक कहना चाहतों की बातें करना स्वप्नों का सजना, विखरना मंज़िलें जिनके लिए सब राज सब संसार तजना अब हैं लगतीं बेवजह ये बेतुका मन का बहकना याद में तिल-तिल तड़पना 'स्वव्यस्त'
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' प्रतिक्रिया देने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद ' - 'स्वव्यस्त'