यह ब्लॉग मुख्यतः कविताओं के निमित्त है, जिनकी रचना मैं अपनी ख़ुद की सोच से करता हूँ, अगर आपको पसन्द आयें तो कृपा कर इन्हें ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाने का कष्ट करें।
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मैं
छायादित अन्तस्तर मेरा
कारण ये नश्वर काया
जैसे, पूर्ण-प्रकाश-विमुख
दीपक
कारण सर्वस
निज
की काया
मैं तो स्वेत, प्रकाश मात्र बस
अँधियारा ये तन लाया
मैं सुत अजर-अमर, आजन्मा
नश्वर जीवन, छल,माया
-0_0- हिमांशु राय 'स्वव्यस्त' -0_0-
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बना रहे तेरा यादमहल ख्वाबों में भी तू बिछड़ेगी , आहट भर से घबरा अक्सर इस सोच मे एक पागल रातों को जगा हुआ ही रह जाये टूटे ना 'यादमहल' तेरा यादों से दूर न तू जाये ।1। जित जागता ये तन रातों को तित कल्प मन में हो रहा प्रबल पाखण्ड मूलतः कभी प्रेम ये कभी असह दुःख, कभी हलाहल " निगलते हैं जो, यही सोच, मन दूर न जाये यादों से वो बना रहे, तेरा यादमहल " ।2। -0_0- हिमांशु राय ' स्वव्यस्त' -0_0-
गम के सायों में प्यार की बारिस में, भींग लिए पल-भर अब आंसुओं से लतफत हो जाने का मन है यादों से भर आया दिल, आज इतना नैनों से नदियाँ बहाने का मन है ।1। जो, कह सका ना कभी हाल तुझसे मेरी चाहतों की बातें तेरे जुल्मों के किस्से मेरी यादों की बगिया वो बिखरे इरादे इक वादा मेरा वो बहाने तेरे ।2। सब रहेंगे सलामत लिखे कागजों में मेरी नादान बातें तेरे नख़रे बड़े ।3। प्यार तो तेरा मुझको न हासिल हुआ गम के सायों में घुप्प चीख जाने का मन है ।4। फिरआंसुओं से लतफत हो जाने का मन है -0_0- हिमांशु राय ' स्वव्यस्त' -0_0-
ख़ुदपसन्दी न कोई बात है अगर तो हँस रहा हूँ क्यूँ मगर? है तंग ही सही डहर मचल रहा डगर-डगर सुबह जो देर से जगा तो हो चुकी है दोपहर है तंग भींड से शहर सभी की आँख जोहती सुनहली, चाँदनी मुहर मुझे, न कुछ भी चाहिए आराम से मैं इस पहर ।1। जगा जो देर से जरा न इल्म है, न मन हरा है जोश है, जुनून है भविष्य मुठ्ठियों भरा सँजो रहा विवेक से है आत्ममान भी भरा है आश एक छुपी हुयी वो डर तो ज्यों डरा-मरा ।2। -0_0- हिमांशु राय ' स्वव्यस्त' -0_0-
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' प्रतिक्रिया देने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद ' - 'स्वव्यस्त'