यह ब्लॉग मुख्यतः कविताओं के निमित्त है, जिनकी रचना मैं अपनी ख़ुद की सोच से करता हूँ, अगर आपको पसन्द आयें तो कृपा कर इन्हें ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाने का कष्ट करें।
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मैं
छायादित अन्तस्तर मेरा
कारण ये नश्वर काया
जैसे, पूर्ण-प्रकाश-विमुख
दीपक
कारण सर्वस
निज
की काया
मैं तो स्वेत, प्रकाश मात्र बस
अँधियारा ये तन लाया
मैं सुत अजर-अमर, आजन्मा
नश्वर जीवन, छल,माया
-0_0- हिमांशु राय 'स्वव्यस्त' -0_0-
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मुझे सपने देखने की बहुत बुरी आदत है, और सपने भी ऐसे देखता हूँ जिनका हकीकत से से कोई लेना देना ही नहीं होता | तो एक दिन ऐसे ही एक सपना देखा मैंने, कि शाम का वक़्त है, मैं कहीं किसी शहर की किसी गली के किसी एक छोटे से कैफ़े में हूँ और प्यार पर कोई एक कविता लोगों को सुना रहा हूँ, सब बड़ी ही शांति से सुन रहे हैं और तभी अचानक से एक आवाज़ गूंजती है, कोई मेरा नाम लेते हुए वाह! करता है .... और मैं थोड़ा चौंक सा जाता हूँ ...क्योंकि आवाज मुझे कुछ सुनी-सुनी सी मालूम पड़ती है | जब मैं उस ओर देखता हूँ, जिधर से आवाज आयी है, तो एक वर्षों पुराना दोस्त सामने खड़ा, मुस्कुराता दिखता है....फ़िर मैं भी उसका धन्यवाद करता हूँ और इशारे में ही उस से कहने की कोशिश करता हूँ, कि event खत्म होने के बाद मिलते हैं | बहरहाल event खत्म होता है, मैं और मेरा दोस्त दोनों बातें करते कैफ़े से बाहर निकल रहे होते हैं और जैसा अक्सर होता है किसी पुराने दोस्त से मिलने पर, अचानक मुँह से निकल जाता है। .. ये...
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' प्रतिक्रिया देने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद ' - 'स्वव्यस्त'