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तब क्या होगा मानवता का !  दरिंदगी दर -दर   मुँह-लोलुप  जिस्म, खून, दौलत  चखने को  हवस में आँखें  माड़ गयीं  और जुनूँ में  भूल गए अपनों को ।१।  घर से चली, बाज़ार को बिटिया  डरी उखड़ती, सांसों में घर  वापस आने तक  सब चिन्तित  किस हाल में लिपटी  लाश मिले क़ब  ।२।   कभी लोग पराए  थे दुश्मन  अब अपने हाँथ  लगे दामन  बिस्ता-बिस्ता  चटके रिश्ते  कोई ओट से  झाँक रहा आँगन  ।३।    जड़ , जिश्मफरोशी  शीशमहल में  धूल झोंक चलती पायल में  रुकते-रुकते  अवरोधक बिकते  नोट, नवेली-नट, ताकत में  ।४। अनाचार आचारपरक  और दुराचार व्यवहार हुआ  साधू भी अय्यास निकल गए  बहुधा पर्दाफ़ाश हुआ  ।५। अफ़सोस नहीं  इस परिवर्तन का  सोच रहा मैं पचपन का  अभी बमुश्किल                नैतिकता है  ...
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शहर में कर्फ़्यू  अपनी कुछ नयी पुरानी स्मृतियों से मेरे मस्तिष्क में उठने वाले, दंगों के उन भयानक दृश्यों को शब्दों में पिरोने की कोशिश की है, जिनकी कल्पना मात्र से ही ऑंखें नम और रोएँ भरभरा जाते हैं और साथ ही एक छोटी सी आशा भी की है, एक ऐसे दिन की           ज़ब धर्मध्वजी का ये खेल समाप्त कर अमन के साथ मानवता की सुरभित कलियाँ दशों दिशाओं को सुगन्धित करेंगी  मची शहर के, गलियारों में  आनन -फानन अति भारी  बार एक फिर, धर्मध्वजी में  गई जगत की मति मारी ।१।   पुलिस के जत्थे, चौक पे चौकस  दहशतगर्दी गलियों में  खून की धारें, फूटीं पग-पग  लाश की जमघट नदियों में |२।    हैवान की नंगी, सूरत नचती  नेपथ्य, कहीं चौबारों में  अस्मत  लुटती थी  चीख़ दब गयी  बाग-बाग दीवारों में ।३। सन्नाटा, झन्नाहट पग-पग  जहाँ थे कल तक, ठेले-मेले  खून के थक्के, जमे जहाँ-तँह कल को बिकते, थे केले ।४।...
याद में तिल-तिल तड़पना   याद में तिल-तिल तड़पना रात का जगना झलक भर को एक-बस वीरान में नज़रें भटकना जाने क्या दीवानगी है अजब दिल का टूट, हँसना याद में तिल-तिल तड़पना अश्क पलकों से फिसलना मुस्कुराकर बात करना सुन सके न कोई, उस आवाज़ से पल-पल बिलखना याद में तिल-तिल तड़पना बेरुखी अंदाज़ में कुछ बेसुधी सी होश में वो, महफ़िलों में, तेरी गोरी बाहों का न होना खलना याद में तिल-तिल तड़पना नींद में भी, होश में भी रात आते स्वप्न में भी स्मरण करना तुम्हारी तुमसे सब बेबाक कहना चाहतों की बातें करना स्वप्नों का सजना, विखरना मंज़िलें जिनके लिए सब राज सब संसार तजना अब हैं लगतीं बेवजह ये बेतुका मन का बहकना याद में तिल-तिल तड़पना   'स्वव्यस्त'
बादल यादें भर-भर लाया बादल यादें भर-भर लाया  तन्हाई का मौसम छाया  छम-छम करता कहर बरसता दिल की आह! से मन भर आया  बादल यादें भर-भर लाया नींद रात की उड़-उड़ जाती  अश्क़ों ने लब-पलक भिंगाया  चैन दिवस भर नहीं एक पल  आशाओं से मन अकुलाया  बादल यादें भर-भर लाया तम के तीन प्रहर जा निकले स्वप्न में शोक ने विघ्न लगाया  जोर-जोर अति     सिसक रहा कोई  कहता प्यार किया क्या पाया ? बादल यादें भर-भर लाया   | |    -0_0-  हिमांशु राय ' स्वव्यस्त' -0_0-  
फिर एक पेड़ को कटते देखा   फिर एक पेड़ को कटते देखा  लौह खम्भ को गड़ते देखा  नूतनता से चिर के पञ्जर  लड़ते-लड़ते गिरते देखा  फिर एक पेड़ को कटते देखा बचपन जिनकी ऊँगली पकडे  गिरते-गिरते चलना सीखा  सनम-कमाई के फेरों में  बाप-पूत में बँटते देखा  फिर एक पेड़ को कटते देखा   रेल के ऊपर से बस दौड़ी  पुल के नीचे छुक-छुक रेल  घोड़े-टट्टु गए तबेले  मोटर ऊँट को चढ़ते देखा  फिर एक पेड़ को कटते देखा   -0_0-  हिमांशु राय ' स्वव्यस्त' -0_0-  
आ मानस तुझे एक, हक़ीकत सुनाऊँ आ मानस तुझे एक, हक़ीकत सुनाऊँ  अपने भय से जने, गरल के प्याले पिलाऊँ  दिल के चाहने से मिलता, न चाह रोक पाता  अपनी आदत से मज़बूर, पीर में मुस्काता तेरा दर्द देख तुझको, सहारा दिखाऊँ आ मानस तुझे एक, हक़ीकत सुनाऊँ ख़ुदा से भी ज़्यादा, मैं ख़ुद से डरा हूँ ये सच ये हक़ीकत है, घबरा रहा हूँ क्योंकि ज़िंदगी कुटिल, जाने कब काट खाए मैं ख़ुद को भूल जाऊँ, एक भूल बस हो जाए न मुझमें बुराई, तनिक भी मग़र जाने कब जाने कैसे, कोई नीचता दिखाऊँ    आ मानस तुझे, ये हक़ीकत सुनाऊँ     -0_0-  हिमांशु राय ' स्वव्यस्त' -0_0-
Some people think like they have freedom to kiss their girlfriend wherever they want and they can do what pleases their girlfriend or boyfriend no matter where they are and who is watching.... who cares for 'who's watching'?( ignorance ) I'm kissing my GF, if she don't have any problem, i don't care about what others think? yeah, well said. Don't care for others, but Who'll answer him? Who'll answer that child, watching all this? I mean he's unaware of things, at-least less than you. But feelings, he/she also have, as they're also human beings. They'll blame the environment one day, in which they grew up and this is how things get more and more worse as time passes. Thoughts will fell-down more and more and then, one day an old man will say in a tired voice "What times have come? our days were not that bad !" ... So, I'm just saying ..don't exclaim... it's not because of me or you or someone specific.It is w...