मुझे सपने देखने की बहुत बुरी आदत है, और सपने भी ऐसे देखता हूँ जिनका
हकीकत से से कोई लेना देना ही नहीं होता | तो एक दिन ऐसे ही एक सपना देखा
मैंने, कि शाम का वक़्त है, मैं कहीं किसी शहर की किसी गली के किसी एक छोटे
से कैफ़े में हूँ और प्यार पर कोई एक कविता लोगों को सुना रहा हूँ, सब बड़ी
ही शांति से सुन रहे हैं और तभी अचानक से एक आवाज़ गूंजती है, कोई मेरा नाम
लेते हुए वाह! करता है .... और मैं थोड़ा चौंक सा जाता हूँ ...क्योंकि आवाज
मुझे कुछ सुनी-सुनी सी मालूम पड़ती है | जब मैं उस ओर देखता हूँ, जिधर से
आवाज आयी है, तो एक वर्षों पुराना दोस्त सामने खड़ा, मुस्कुराता दिखता
है....फ़िर मैं भी उसका धन्यवाद करता हूँ और इशारे में ही उस से कहने की
कोशिश करता हूँ, कि event खत्म होने के बाद मिलते हैं |
बहरहाल event खत्म होता है, मैं और मेरा दोस्त दोनों बातें करते कैफ़े से बाहर निकल रहे होते हैं और जैसा अक्सर होता है किसी पुराने दोस्त से मिलने पर, अचानक मुँह से निकल जाता है। .. ये प्यार-मोहब्बत की बातें तो बहुत हुईं दोस्त, चल चाय पीते हैं |
अगले दिन जब मैं सो कर उठा, तो मैंने सोचा क्यों न अपने दोस्तों के नाम एक कविता ही लिख ली जाय ? और जब दोस्तों के नाम कविता लिखने की बात आयी तो उस दिन 'चलो चाय पीते हैं' से अच्छा कोई शीर्षक नहीं सूझा। ....
तो पेश है वो कविता आप सबके लिए.... जरा गौर फरमाएं -
ये इश्क़े-ग़म-ए-ज़िन्दगी तो बहुत हुई यार
चलो चाय पीते हैं
कहाँ खोए थे इतने दिन
मुझे भी याद करते थे ?
बड़े अरसे हुए मिल साथ में गप्पे लड़ाए भी
अच्छा सुनो....
मौक़ा भी प्यारा है
औ ये मौसम भी है प्यारा
तो फ़िर एक काम करते हैं
चलो चाय पीते हैं
मेरे दोस्त भी बड़े नायाब हैं, बड़े प्यार से बात करते हैं, और किसी भी बात को इतनी नजाकत से कहते हैं कि बस बात दिल को छू जाती है
मेरे दोस्त का जवाब सुनिए -
बहुत कुछ छूट सा जाता है
जब तुम-सब नहीं होते
मगर जब भी रहें तन्हाइयों में
याद करते हैं
चलो जब साथ हो, तो
रुक के दो-पल बात करते हैं
हाँ....
ठीक ही है
चलो चाय पीते हैं
-स्वव्यस्त
बहरहाल event खत्म होता है, मैं और मेरा दोस्त दोनों बातें करते कैफ़े से बाहर निकल रहे होते हैं और जैसा अक्सर होता है किसी पुराने दोस्त से मिलने पर, अचानक मुँह से निकल जाता है। .. ये प्यार-मोहब्बत की बातें तो बहुत हुईं दोस्त, चल चाय पीते हैं |
अगले दिन जब मैं सो कर उठा, तो मैंने सोचा क्यों न अपने दोस्तों के नाम एक कविता ही लिख ली जाय ? और जब दोस्तों के नाम कविता लिखने की बात आयी तो उस दिन 'चलो चाय पीते हैं' से अच्छा कोई शीर्षक नहीं सूझा। ....
तो पेश है वो कविता आप सबके लिए.... जरा गौर फरमाएं -
ये इश्क़े-ग़म-ए-ज़िन्दगी तो बहुत हुई यार
चलो चाय पीते हैं
कहाँ खोए थे इतने दिन
मुझे भी याद करते थे ?
बड़े अरसे हुए मिल साथ में गप्पे लड़ाए भी
अच्छा सुनो....
मौक़ा भी प्यारा है
औ ये मौसम भी है प्यारा
तो फ़िर एक काम करते हैं
चलो चाय पीते हैं
मेरे दोस्त भी बड़े नायाब हैं, बड़े प्यार से बात करते हैं, और किसी भी बात को इतनी नजाकत से कहते हैं कि बस बात दिल को छू जाती है
मेरे दोस्त का जवाब सुनिए -
बहुत कुछ छूट सा जाता है
जब तुम-सब नहीं होते
मगर जब भी रहें तन्हाइयों में
याद करते हैं
चलो जब साथ हो, तो
रुक के दो-पल बात करते हैं
हाँ....
ठीक ही है
चलो चाय पीते हैं
-स्वव्यस्त
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