बुढ़ापा
सिसकती थक हार जीवन
अंत से बेजान जर्ज़र
सह थपेड़े जिंदगी के
पूतों के दुत्कार बर्बर |1|
झुक गईं सब अस्थियाँ
कोमल त्वचा झुर्रा गयी
ज्यों सर तड़ागों की कुमुदनी
धूप से कुम्हला गई |2|
प्रीत थी जब तक थे प्रीतम
प्रियतमा कहने को कोई
नींद थी, रातें भी थीं
और साथ में हम-राह कोई |3|
पर... अब वो प्रीतम
न प्रीत जग में
ना रहा हमदर्द साईं
खो गए श्रृंगार सारे
गेसुओं की रहनुमाई |4|
अब तो बस, कुछ यादें दिल में
ढेर सारी सिसकियाँ हैं
दूर से आदर दिखाती,
शेष कुछ नजदीकियां हैं |5|
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