चुनावी-भूत
बना रहे तेरा यादमहल ख्वाबों में भी तू बिछड़ेगी , आहट भर से घबरा अक्सर इस सोच मे एक पागल रातों को जगा हुआ ही रह जाये टूटे ना 'यादमहल' तेरा यादों से दूर न तू जाये ।1। जित जागता ये तन रातों को तित कल्प मन में हो रहा प्रबल पाखण्ड मूलतः कभी प्रेम ये कभी असह दुःख, कभी हलाहल " निगलते हैं जो, यही सोच, मन दूर न जाये यादों से वो बना रहे, तेरा यादमहल " ।2। -0_0- हिमांशु राय ' स्वव्यस्त' -0_0-
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