बादल यादें भर-भर लाया बादल यादें भर-भर लाया तन्हाई का मौसम छाया छम-छम करता कहर बरसता दिल की आह! से मन भर आया बादल यादें भर-भर लाया नींद रात की उड़-उड़ जाती अश्क़ों ने लब-पलक भिंगाया चैन दिवस भर नहीं एक पल आशाओं से मन अकुलाया बादल यादें भर-भर लाया तम के तीन प्रहर जा निकले स्वप्न में शोक ने विघ्न लगाया जोर-जोर अति सिसक रहा कोई कहता प्यार किया क्या पाया ? बादल यादें भर-भर लाया | | -0_0- हिमांशु राय ' स्वव्यस्त' -0_0-
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फिर एक पेड़ को कटते देखा फिर एक पेड़ को कटते देखा लौह खम्भ को गड़ते देखा नूतनता से चिर के पञ्जर लड़ते-लड़ते गिरते देखा फिर एक पेड़ को कटते देखा बचपन जिनकी ऊँगली पकडे गिरते-गिरते चलना सीखा सनम-कमाई के फेरों में बाप-पूत में बँटते देखा फिर एक पेड़ को कटते देखा रेल के ऊपर से बस दौड़ी पुल के नीचे छुक-छुक रेल घोड़े-टट्टु गए तबेले मोटर ऊँट को चढ़ते देखा फिर एक पेड़ को कटते देखा -0_0- हिमांशु राय ' स्वव्यस्त' -0_0-