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Showing posts from November, 2017
मुझे सपने देखने की बहुत बुरी आदत है, और सपने भी ऐसे देखता हूँ जिनका हकीकत से से कोई लेना देना ही नहीं होता | तो एक दिन ऐसे ही एक सपना देखा मैंने, कि शाम का वक़्त है, मैं कहीं किसी शहर की किसी गली के किसी एक छोटे से कैफ़े में हूँ और प्यार पर कोई एक कविता लोगों को सुना  रहा हूँ, सब बड़ी ही शांति से सुन रहे हैं और तभी अचानक से एक आवाज़ गूंजती है, कोई मेरा नाम लेते हुए वाह! करता है  .... और मैं थोड़ा चौंक सा जाता हूँ ...क्योंकि आवाज मुझे कुछ सुनी-सुनी सी मालूम पड़ती है | जब मैं उस ओर देखता हूँ, जिधर से आवाज आयी है, तो एक वर्षों पुराना दोस्त सामने खड़ा, मुस्कुराता दिखता है....फ़िर मैं भी उसका धन्यवाद करता हूँ और इशारे में ही उस से कहने की कोशिश करता हूँ, कि event खत्म होने के बाद मिलते हैं |                        बहरहाल event खत्म होता है, मैं और मेरा दोस्त दोनों बातें करते कैफ़े से बाहर निकल रहे होते हैं और जैसा अक्सर होता है किसी पुराने दोस्त से मिलने पर, अचानक मुँह से निकल जाता है। .. ये प्यार-मोहब्बत की बातें तो बहुत हुईं दोस्त, चल चाय पीते हैं |             अगले दिन जब मैं स

परिवर्तन

एक शेर अर्ज़ है - न जाने कब समझ पाएंगे, मुर्दा रेंगते ज़ालिम जुबां से दर्द कहने में भी, कितना दर्द सहता हूँ || ********************************************************** एहसास बदलते जाते हैं इतिहास बदलते जाते हैं इस परिवर्तन को अपनाते इंसान बदलते जाते हैं कुछ ख़ास बदलते जाते हैं ये रास बदलते जाते हैं और पैसों की इस नगरी में विस्वास बदलते जाते हैं धन लोभ में उलझे जीवन के सरोकार बदलते जाते हैं उस देव मूर्ति के बेशक़ीमती हार बदलते जाते हैं (इंसान समस्त प्राणियों में सबसे बुद्धजीवी है, इसलिए उसकी तुलना परमात्मा के बेसकीमती हार से की है) इस शहर की चलती रेल-सड़क वो मकान बदलते जाते हैं अरे ! धुन में लिखे इन गीतों के फ़नकार बदलते जाते हैं सर्वत्र जोर इस परिवर्तन का परिवर्तन सब पर भारी [ ये एक ऐसा चक्र है, जिसकी न तो कोई शुरूआत है, न कोई अंत, या अंत ही शुरुआत है, कुछ स्पष्ट नहीं हो पाता, ये बस चलता रहता है, और जो रोकने की जुर्रत करता है, उसका अस्तित्व ही नष्ट हो जाता है ] तो सर्वत्र जोर इस परिवर्तन का परिवर्तन सब पर भारी जो चल न सका दो कदम मिला है कुचल गया वो संसारी ( कोडक जैसी कम्पनी, जो कभी